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लेखनी प्रतियोगिता -01-Jun-2022 जादुई घडा़

                    एक गाँव मे एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। वह ब्राह्मण अपने परिवार का गुजारा बहुत ही कठिनाई से करपाता था।


   उसके परिवार को कभी कभी तो भूखे भी सोना पड़जाता था।  उसके एक बेटा था। उसे कभी गाय का दूध भी नसीब नहीं हुआ था।

    एक दिन उनके घर एक पहुँचे हुए सन्त पधारे। वह सन्त जिसकी  कुटिया में एक रात आराम कर लेते  थे वह कुटिया पवित्र होजाती थी।

      जब भी सन्त उस गाँव मे आते थे तब सभी लोग यह सोचते थे कि वह सन्त आज उनके घर बिश्राम करें लेकिन वह अपनी इच्छा से ही स्वयं ही रुकने  के लिए घर का चुनाव करते थे।

      जब उन सन्त महाराज ने आजकी रात उस ब्राह्मण की कुटिया में आराम करना चाहातब वह बहुत प्रसन्न हुआ। परन्तु कुछ समय बाद उसकी यह प्रसन्नता चिन्ता में बदल गयी।

     वह ब्राह्मण  सोचने लगा कि वह सन्त को क्या खिलायेगा।क्यौकि उसके घर तो आज केवल इतना ही आटा हैकि उससे एक ही आदमी का पेट भर सकता है।

       यदि वह इस आटे को सन्त जी को खिलादेगा तब  उन सबको भूखा रहना होगा। वह  दौनौ पति पत्नी तो भूखे रह लैगे लेकिन वह बच्चा कैसे भूखा रहेगा।

     वह इसी कसमकस मे बैठा सोचरहा था कि उसकी पत्नी ने उसको चिन्ता का कारण पूछा उसने पत्नी को कारण बता दिया। यह सुनकर उसकी पत्नी भी सोचने लगी। जब उनके बेटे ने दौनौ को परेशान देखा तब  उसने अपने माता पिता से चिन्तित हौने का कारण पूछा ।

     जब उसके पिता ने अपने बेटे कोयह बात बताई तब बेटा बोला,"  पिताजी आप चिन्ता का त्याग करदो मै आज की रात पानी पीकर ही सोजाऊँगा।

      यह सब वार्तालाप वह सन्त सुन रहे थे। जब ब्राह्मण खाना बनबाकर उनके लिए लाया तब सन्तजी ने भगवान का भोग लगाकर वह खाने की थाली बापिस देते हुए बोले," देखो ब्राह्मण देवता आज मैं भोजन नही कर पाऊँगा क्यौकि मेरे पेट में दर्द हो रहा है।"

     ़। ब्राह्मण बोला," नही महाराज ऐसा कैसे होसकता है कि मै खाना खालू और आप भूखे रहै आपको कुछ तो खाना होगा। "

     सन्त महाराज उसकी इस बात पर तैयार होगये और उन्हौने उसमें से कुछ भोजन रख लिया। अब ब्राह्मण ने वह बचा हुआ भोजन अपने बेटे को खिलादिया।

        जब वह सन्त प्रातः जाने  लगे तब उन्हौने उस ब्राह्मण की निष्ठा से खुश होकर एक मिट्टी का घडा़ दिया और उसे बताया कि इस घडे़ से तुमदिन में दोबार कितना ही भोजन माँग सकते हो।

      वह घडा़ उस ब्राह्मण को देकर और उसकी माँगने की बिधि बताकर वह चलेगये। अब उस ब्राह्मण ने उस घडे़ से जब तीन। ब्यक्तियौ का भोजन माँगा तब अति स्वादिष्ट भोजन   उनके सामने आगया।

       अब वह ब्राह्मण परिवार सुख से रहने लगा। एक दिन एक लालची सन्त  को इसकी खबर लगी ।तब वह उनके घर  एक सौने जैसा घडा़ लेकर आया। उसके साथ उसकै  सौ चेले भी थे।

               उस ब्राह्मण ने उन सन्त के सामने ही उस घडे़ की पूजा करके 104व ब्यक्तियौ का भोजन माँगा तो कुछ समय में ही अति स्वादिष्ट भोजन। आगया  ़वह सन्त व उसके शिष्य भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुए।

     ़वह सन्त बहुत चालाक था उसने  उस ब्राह्मण को लालच दिखाकर उसे सौने जैसा घडा़ दे दिया । और बोला यह सौने का है  और यह भी  तुम्है भोजन के साथ पैसा भी देगा और टूटने पर  अच्छे भाव में बिक जायेगा। वह लालच मे आगया ।

   जब ब्राह्मण ने उस घडे़ की पूजा करके तीन ब्यक्तियौ का भोजन माँगा तब भोजन नहीं आया। उसने तीन चार बार उससे भोजन माँगा परन्तु वहाँ कुछ नहीं आया।

       अब वह समझ गया कि उसके साथ धोका होगया जब वह उसे बेचने गया तब किसीने नही खरीदा। अब लह अपने लालच पर पछताने लगा।

       वह फिर खाने के लिए परेशान हौने लगा। कुछ दिन बाद वही सन्त  जिसने उसे घडा़ दिया था उसके घर पधारे। तब वह ब्राह्मण उनके चरणौ मे गिर गया और बोला ," महाराज  मेरा साथ धोका  होगया मै लालच में फस  गया। यह कहकर उसने पूरी घटना ब

         तब सन्त ने अपनी योग माया से देखा तब उनको मालूमहुआ कि एक चालाक महात्मा उसका असली घडा़ लेगया और नकली घडा़ देगया है।

     उन सन्त ने पहले वाले घडे की जादुई शक्ति को निष्क्रिय कर दिया ।और ब्राह्मण को नया घडा़ देकर उन्हौने उसे समझाया कि तेरा असली घडा़ वह सन्त लेगया है अब उसका पहलेवाला घडा़  बेकार होगया है जिससे वह तुम्हारे घर फिर आयेगा लेकिन तुम असली घडा़ माँगने के बाद छिपादेना और नकली घडा़ बाहर रखदेना। जिससे वह नकली घडा़ लेजायेगा।

        ऐसा ही हुआ ।  इसबार उन्हौने दो घडे़ दिए  नकली घडे़ से आवाज आती थी कि ये ले ये ले लेकिन वह देता कुछ नही था। वह केवल बोलता था।

                वह चालाक सन्त अपने शिष्यौ के साथ आया।इस बार ब्राह्मण ने बैसा ही किया जैसा सन्तजी बताकर गये थे। वह चालाक साधू नकली घडा़ लेकर चलागया। जब उसने अपनी कुटिया में पहुच कर उससे माँगा तब वह घडा़ बोला," ये ले ये ले बस वह बोल रहा था दे कुछ नहीं रहा था।

     उस साधू को अपने साथ हुए धोके से बहुत दुःख हुआ और वह  फिर उस ब्राह्मण के घर गया लेकिन इस बार उस ब्राह्मण ने उसे यह कहकर भगा दिया कि तू बहुत ढौगी है अब मै तेरी चालाकी समझ गया हूँ।

     अब मै तेरे बहकाबे में नही आऊँगा।

     अतः हमे लालच में नहीं आना चाहिए क्यौकि लालच बुरी बला है।

दैनिक प्रतियैगिता हेतु रचना।

नरेश शर्मा  " पचौरी "

01/06/2022

   

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11 Comments

Kusam Sharma

03-Jun-2022 08:50 AM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

02-Jun-2022 04:10 PM

बेहतरीन

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Punam verma

02-Jun-2022 09:02 AM

Nice

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